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प्रयास

जो भी है चलते जाता है,अपना और पराया। क्या लेकर जग में आये थे, बतलाना रे भाया।। माया का सब खेल जगत में ,नाच रहे नर नारी। लूट खसोट मची है जग में,नैतिकता बेचारी ।। अगर नहीं हम जगे अभी,तो हो जायेगी देर। दुर्गुण ना बढ.जाये भैया, हो पाये ना अन्धेर।। चलो संगठित हो कर सारे,मिल कर करें प्रयास। सदगुण जीते, मानवता का होता रहे विकास।।

सृजन

मिलती है सौगाते खिलते   मन के फूल , जब माँ जनती है   नन्हे से प्रतिरूप . कोमलता से   भर दे मन के सब अवकाश , जब  गूंजे  किलकारी उमड़े मन में अनुराग , लगता मीठा – मीठा पीड़ा का एहसास , जब खुलती दो आंखें सृजक के संग साथ , छोटी – छोटी ऊँगली छोटे-छोटे हाँथ , छू जाये जब तन को   छेड़े मन के तार , ममता ले हिलोरे निकले अमृत   धार , जब शिशु   कराता है माँ के स्तनपान , जीवन की अभिलाषा   हो जाये सब   तृप्त , जब अमृत धरा से हो नव शिशु   संतृप्त , प्यारी-प्यारी बाते प्यारे-प्यारे बोल , जब भी बोले घोले मिश्री प्यारे बोल , ये है माँ की गरिमा   जग पे है उपकार ,   कष्ट उठा के देती जीवन भर का प्यार , कैसे पा सकता है पुरुष प्रकृति   से पार , सृजक   ने दे रखा   सृजन का उपहार , लौकिकता से प्रेरित जीवन का अभिमान , क्षण भंगुरता को देते जिजीविषा से हार , सृजन की ही पीड़ा देती नव उत्साह   , सृजक भर लेता   है मुठ्ठी में आकाश ,

चक्रव्यूह

चक्रव्यूह ये कैसा भाई , देख जाल ये  मुर्क्षा आई , बड़ी निराशा कँही न आशा , अन्धकार है बदली छाई , नैतिकता  का ओढ़ लबादा , ढोंगी करते छल कुटिलाई , रंगे सियारों की टोली है , सच्चा शेर न पड़े दिखाई ,  चक्रव्यूह ये कैसा भाई..... खड़ा ओंट में चोट करे नित ,  पीठ में खंजर देत चुभाई, अगर बहादुर सामने आओ , सिद्धान्तों की करे  लड़ाई ,  चक्रव्यूह ये कैसा भाई..... करे सामने प्यारी बातें, दोषों को गुण दे बतलाई, बनके मित्र भेद ले दिल का , शत्रु को दे  भेद जनाई, चक्रव्यूह ये कैसा भाई.... गला काट प्रतिस्पर्धा है , सहकारिता कहीं ना पाई , टांग खींच लो बढ़े ना आगे , मेहनत पे विश्वास ना भाई, चक्रव्यूह ये कैसा भाई.. रक्षक ही भक्षक बन बैठा , सेवक  सुने न करे ढिठाई, माली स्वयं बाग को काटे , क्या उपवन होगा सुखदायी, चक्रव्यूह ये कैसा भाई.. सत्य लगा बाजार में बिकने, लम्पट बोली रहे लगाई, भेड़-चाल है बुरा हाल है, भ्रष्ट-भ्रष्ट मौसेरे भाई, चक्रव्यूह ये कैसा भाई.. जिसे समझ आदर्श पूजते,  वह दल-दल में पड़े दिखई, व्यक्तिवाद का दमन छोड़ो, सिद्धांतो को लो अपनाई, चक्रव्यूह ये कैसा भ

नानी कौन ?

आती याद मुझे नानी नानी  कौन ? नानी मेरी माँ जी  की माँ , मेरे पिता जी की सासू माँ , मेरे नाना जी की पत्नी, मेरे मामा जी और माँसी जी की माँ , मेरी मामी जी की सासू माँ, मेरे ममेरे भाई बहनों की  अम्मा, मेरे सहोदरों और मौसेरे भाई बहनों की नानी  , और मेरी प्यारी-प्यारी नानी ,  मुझे  आती  है अक्सर मेरी नानी की याद,  जब भी  होता हूँ  अकेला और उदास ,  नानी की  याद से  मिलाती है मुझे प्रेरणा , बढ़ता है मेरा  आत्मविश्वाश , क्योकि मै हूँ उनका  अंश , जिसने सींचा  है अपने खून  पसीने से अपना  वंश , वैसे साहित्य में तभी आती है नानी की याद ,  जब करनी होती है चुनौती भरी बात  , कभी -कभी दोस्तों  नानी को कर लिया करो याद , क्योकि नानी है रिश्तो की  सबसे बड़ी खाद , अगर नानी अपनी न होती भाई, तो हम दुनिया में न देते दिखाई , और न लिखते कविता और कहानी , न आती याद मुझे नानी ,

नानी

'नानी ' न से नाना ,न से 'नानी ', नानी मेरी बड़ी सयानी , रोज सुनती लोरी मुझको , कविता गीत  कहानी । दूध पिलाती ,खीर खिलाती , मक्खन ,मिश्री ,छाछ , ताज़ी रोटी साथ नमक घी , नीबू ,चटनी ,प्याज । खेल खिलाती ,नये - नये  नित , देती नयी सिखावन , तेरी गोदी में आ "नानी " धन्य हुआ ये जीवन । *स्वर्गीय नानी की याद में कविता रूपी  श्रधा सुमन   ।

आदमी शैतान बनता जा रहा है

आदमी शैतान बनता जा रहा है   आदमी शैतान बनता जा रहा है , नित नए प्रतिमान गढ़ता जा रहा है । १-आदमी की आदमीयत खो गयी , आज क्यों कर नेक नीयत रो रही । सृजन क्यों विध्वंश बनता जा रहा है ? २-क्यों नहीं संसाधनों में संतुलन , भिन्नता में एकता पर  जोर कम , बिक रहा है नीर क्या कल वायु भी बेचेगा तू ? ग्लेशियर हिमनद पिघलता जा रहा है - ३-भीड़ है लाखो करोड़ो लोग है , यांत्रिक सम्बन्ध बस गठजोड़ है । हो रही प्रतियोगिता पर स्वस्थ हो, क्यों बिना उद्देश्य भगता जा रहा है ? ४- पाठशाला है बड़ी या विश्व गुरुकुल , अंग्रेजी बड़ी या हिंदी माँ - तुल्य , श्रेष्ठ कला है या विज्ञान है , शिक्षा का उद्देश्य मिटाता जा रहा है - ५-लूटता है आज भाई -भाई को , लूटता है आज राही - राही को , भूख से तू बिल बिला के मर रहा , मुझको  तो भर पेट भोजन मिल रहा । क्यों सहज सम्बन्ध मिटाता जा रहा है ?

माँ का आंचल

माँ का आंचल हर कष्ट उठाकर प्यारी माँ तू नयी जिंदगी देती है ,  तेरी शुभता से प्रेरित हो हर राह सुखद बन जाती है ,  तेरे आशीष वचन से माँ ,कांटे भी लगते फूल मुझे ,  दुरगम हो पंथ भले कितना ,मेरी राह सुखद हो जाती है,  तेरी गोदी में आके माँ लोहा सोना बन जाता है ,  अनगढ़ मिटटी का लोंदा भी ,मूरत प्रभु की कहलाता है ,  एहसास तेरी ममता का माँ जीवन में अमृत घोल रहा , तेरी आंचल की छाया से, हर दर्द सुखद मन बोल रहा ,  उपकार तेरा मुझ पर अनंत ,प्रेरित तुझसे मेरा पल क्षण ,  हर जन्म मिले तेरा आंचल ,अभिलाषा ये मेरी हर क्षण ,  संघर्ष भरे इस जीवन में ,तू दीपक घोर अँधेरे में,  तेरे पथ प्रदर्शन से मेरा जन्म धन्य हो जाता है ,